३४२ ॥ श्री निरञ्जन बाबा जी ॥ दोहा:- कहै निरञ्जन शिष्य बनि, गह्यौ न सतगुरु बैन। मूरि सजीवन त्याग फिरि, भटकि मरयौ दिन रैन।१।