३५८ ॥ श्री विन्ध्येश्वरी माई जी ॥
पद:-
राज सदन में राम सिया के बालक रामायन जस गायो।
लव औ कुश की पीठि पै कर धरि बालमीकि मुनि ध्यान लगायो।
इष्ट शिवा शिव को बन्दन करि तब कुँवरन श्लोक उठायो।
वीणा के संग तन मन प्रेम से धुनि स्वर एकै साथ मिलायो।
शब्द शब्द के रूप प्रगट ह्वै नाच नाच कै भाव बतायो।५।
ताल ग्राम-स्वर धुनि सम तन धरि राग रागिनिनि के संग आयो।
छवि सिंगार छटा सब साजौ निज निज तन ते धूम मचायो।
पांच वर्ष के बालक दोनो अवध में यह कौतुक दिखलायो।
लोक भुवन औ द्वीप खण्ड सब लखि लखि नैन नीर झरि लायो।
बन गिरि सरिता सागर नाले ताल तलैयन तन पुलकायो।१०।
जल चर थल चर नभ चर मोहे माया मृत्यु काल गश खायो।
अगिनि पौन-जल-पृथ्वी गगनौ सुर मुनि सब के होश उड़ायो।
शान्ति शील सन्तोष दीनता सरधा छिमा सत्य चुपकायो।
ज्ञान-ध्यान-जप-तप सुख गण औ प्रेम-प्रीति विश्वास लुभायो।
यह लीला सतगुरु करि देखा केवल सूरति शब्द लगायो।
विन्ध्येश्वरी कहैं नर नारी भजन करौ जेहि हित तन पायो।१६।