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३६७ ॥ श्री ब्वारा शाह जी ॥


पद:-

पावो राम नाम का ह्वारा।

सतगुरु करि सुमिरन विधि जानो टूटै द्वैत का द्वारा।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि बैठौ हरि के क्वारा।

अनहद सुनो अमी रस चाखो घट में उठत हिलौरा।

सुर मुनि मिलैं सुनावैं हरि यश मग ग्रह तुम्हरे द्वारा॥५।

सूरति शब्द में तन मन प्रेम से जिन जियते में ज्वारा।

तिन सब करतल कीन मगन भे भर्म का भाँडा फ्वारा।

दीनन को उन भेद बताइ के भव का बँधन त्वारा।

सारे असुर भगैं खिसियाई के निज निज मुख को म्वारा।

शांति सत्य विश्वास से भाई ख्याल कीजिये थ्वारा।१०।

तब तो साधन सिध्दि जाय ह्वै नेक न लगै झिक्वारा।

मानो बचन समय मत खोवो बार बार कहैं ब्वारा।१२।