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३७० ॥ श्री वटावन शाह जी ॥


पद:-

भजिये राम नाम अति पावन।

सतगुरु करि सुमिरन विधि जानो सूरति शब्द लगावन।

खुलै नाम धुनि रं रं रं रं हर शै से भन्नावन।

ध्यान प्रकाश समाधी होवै सुधि बुधि तहां भुलावन।

ज्ञान अगिन में कर्म जांय जरि विधि का लिखा मिटावन।५।

अमृत पियो सुनो घट अनहद सुर मुनि हंसि उर लावन।

नागिन जगै चक्र सब बेधैं सातों कमल फुलावन।

इड़ा पिंगला जाय एक ह्वै सुखमन घाट नहावन।

विहँग मार्ग ह्वै चलि पश्चिम दिस निज घर लखि हर्षावन।

सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख में छवि छावन।१०।

जियतै जानि लेय जो प्रानी मेटै आवन जावन।

शांति दीनता बिन न होय कछु कहते शाह बटावन।१२।