३८८ ॥ श्री मुंडा बाज नट जी ॥
पद:-
सतगुरु करो मारग गहौ सारे असुर तन से भगैं।
परकाश ध्यान समाधि धुनि हो श्रवन रोम औ रग जगै।
नैन फल पावै सामने राम सीता जगमगैं।
प्रेम से करि कीर्तन सुर मुनि दरश देने लगैं।
अमृत चखौ अनहद सुनो तब कवन फिरि तुमको ठगैं।
त्यागि तन निज धाम लो जहँ राम खुद निज रंग रंगै।६।