४०२ ॥ श्री लढ़ा बाज नट जी ॥
पद:-
जियतै ब्रह्म परायन बनिये सतगुरु करिके नर औ नारी।
ध्यान परकाश समाधि नाम धुनि करम देय दोऊ जारी।
सुर मुनि मिलैं सुनो घट अनहद अमृत पियो संभारी।
हर दम सन्मुख में तब राजैं राधे सहित मुरारी।
जिनका विश्व रचा है जानो बांटत हैं फल चारी।
अन्त त्यागि तन निजपुर बैठो भव दुख लात से टारी।६।