४०७ ॥ श्री नर हरि सोनार जी ॥
(शिष्य श्री ज्ञानेश्वर महाराज)
पद:-
त्रिवेनी नहावो मन चन्दै।
सतगुरु करि सुमिरन विधि जानो जियत मिटावौ भव फन्दै।
ध्यान परकाश समाधि नाम धुनि पाय जाव बनि निर्द्वन्दै।
सुर मुनि मिलैं सुनो घट अनहद होय ना फिर कबहुँ बन्दै।
श्यामा श्याम सामने राजैं जे सब विश्व के सुख कन्दै।
नर हरि कहैं अन्त निजपुर लो जहं हर दम परमानन्दै।५।