४२२ ॥ श्री निर्भय शाह जी ॥
पद:-
पूरन कृपा करैं हरि वा पर जो बे खता सहैं कटु बात।
सच्चा सतगुरु का सोई चेला मातु पिता का तात।
ध्यान परकाश समाधि नाम धुनि बाजै हरदम ताँत।
सुर मुनि मिलैं सुनो घट अनहद चखै अमी हरखात।
राम सिया की झांकी सन्मुख संग में तीनो भ्रात।५।
जगै नागिनी चक्र चलैं सब कमलन महक उड़ात।
सारे तीर्थ नहाय लोक सब घूमि सभा नित जात।
निर्भय शाह कहैं तन त्यागि के चलि निज पुर ठहरात।८।