४२७ ॥ श्री कम खर्च शाह जी ॥ (५)
पद:-
बुझनी सुननी कथा पहेली कहैं श्याम वो श्यामा।
सखी लाड़िली की जै बोलैं सखा श्याम कह नामा।
दोनों दिश की जय में शामिल बैठि तहां बलिरामा।
सुर मुनि नभ ते लीला देखैं फेकैं सुमन तमामा।
नाचैं गावैं खूब बजावैं निज निज लिहे दमामा।५।
यह झांकी सतगुरु कर निरखै सुफ़ल होय नर चामा।
ध्यान धुनी परकाश दसा लय सन्मुख सोभा धामा।
कहैं कम खर्च शाह तन तजि कै पावै अचल मुकामा।८।