४७३ ॥ श्री पाटा शाह जी ॥
पद:-
लीजै राम नाम का आटा।
सतगुरु करि सब भेद जान लो परै न कबहुं घाटा।
धुनि ध्यान प्रकाश दशा लय मिलै मिटै भव कांटा।
अनहद सुनौ देव मुनि दर्शैं असुर भगैं जिमि भांटा।
सियाराम प्रिय श्याम रमा हरि सुर मुनि बेदन छांटा।५।
सन्मुख रहैं न अन्तर होवैं प्रेम कि मारैं चाटा।
अगम अपार अकथ षट झांकी भाव से भक्तन बांटा।
सूरति को जिन शब्द पै धरि कै बैठि एकान्त में सांटा।
उनका मुद मंगल भा जानो लागि ग पक्का लाटा।
नर तन पाय नाम नहिं चीन्हा अन्त उन्हैं यम डाटा।१०।
जाय नर्क लै सज़ा कठिन दें भूजैं जैसे भांटा।
नर नारी सब भजन करो नित विनय करैं यह पाटा।१२।