५२६ ॥ श्री खुशीराम जी ॥
पद:-
सांचे रसिक बनो सब भाई।
सतगुरु से सुमिरन विधि जानि के सुमिरो तन मन लाई।
ध्यान प्रकाश समाधी होय धुनि नाम की परै सुनाई।
अनहद बजै देव मुनि दर्शैं पिऔ अमी हरखाई।
सीता राम की झांकी सन्मुख रहै हमेशा छाई।
खुशी राम कहैं अन्त त्यागि तन बैठो निज पुर जाई।६।