५४० ॥ श्री धोका शाह जी ॥
पद:-
सर्व धर्म को त्यागि कै अब हरि शरण चल दीजिये।
सतगुरु से मारग जानकर जियतै में करतल कीजिये।
धुनि ध्यान लय परकाश हो अनुपम अमी रस पीजिये।
अनहद सुनो सुर मुनि मिलैं हरि यश कहैं सुन लीजिये।
सनमुख में राधे श्याम की अदभुत छटा लखि लीजिये।५।
सत्य शान्ति औ दीनता गहि प्रेम अविरल कीजिये।
तन मन निछावर करिके बस उस रंग ही में भीजिये।
अन्त तन को छोड़ि के साकेत को चलि दीजिये।८।