५४७ ॥ श्री उमंग शाह जी ॥
हरि नाम के भजे बिन जग में बहार नाहीं।
दिन चार यहं पै रहना सोचत हो यार नाहीं।
सतगुरु करौ गहौ मग नेकौ अबार नाहीं।
धुनि ध्यान नूर लय हो जहं पर विचार नाहीं।
सुर मुनि औ शक्ती दर्शैं जिनका शुमार नाहीं।५।
सनमुख में श्याम श्यामा सुख का सम्हार नाहीं।
तन त्यागि लो अचलपुर जहं पर पुकार नाहीं।
हो रूप रंग हरि सा तब तो निसार नाहीं।८।
दोहा:-
हरि सुमिरन बिन जगत में स्वल्प सुक्ख नहिं होय।९।
कह उमंग मानो सही निशि दिन पीटत दोय।१०।