५५१ ॥ श्री अनूठी माई खोंची जी ॥
पद:-
दाढ़ी वाह वाह में नोची।
सतगुरु किहेव न धर्म कमायो अन्त बात भई पोची।
नर्क में दुख हर दम यम देवैं भालन ते तन कोंची।
हाय हाय की बानी बोलैं रहै मनै मन सोची।
कलपन भोग भोगिकै आवैं फिर पावैं तन मोची।
काठी जूता सियें औ बेचैं कहैं अनूठी खोंची।६।