५५५ ॥ श्री ख्याल शाह जी ॥ (४)
सतगुरु करि सुमिरन विधि जानो तन से असुर निसरि सब भाजैं।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि अनहद सुनो मधुर घट बाजैं।
अमृत पिओ देव मुनि आवैं हरि यश कहैं हर्ष के गाजैं।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि गिरिजा शिव सन्मुख में राजैं।
शान्ति शील सन्तोष दीनता सरधा क्षिमा सत्य मन माजैं।
दया धर्म विश्वास प्रेम ते मुक्त भक्त साकेत विराजै।६।