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६०४ ॥ श्री ठाकुर हरनाम सिंह जी गौर ॥


पद:-

शान्ति की शमशेर के संग दीनता की ढाल हो।

सारे जहां में हो दखल तेरा न बांका बाल हो।

सतगुरु करो पावो पता बनि जावो माला माल हो।

धुनि ध्यान लय परकाश पाओ कटै लिखा जो भाल हो।

देव मुनि के दर्श होवैं सुनौ अनहद ताल हो।५।

सनमुख रहैं हर समय राधे सहित नन्द के लाल हो।

असुर माया मृत्यु यम गण क्या करै तब काल हो।

त्यागि तन निज पुर हो दाखिल जाव बनि मतवाल हो।८।