६२४ ॥ श्री ठाकुर वघेल जानकी सिंह जी ॥
पद:-
राम नाम कोई बिरलै पावै।
सतगुरु बिन यह पद है दुर्लभ पढ़ि सुनि हाथ न आवै।
शान्ति दीनता से जो प्राणी सूरति नाम पै लावै।
खुलै अखण्डित धुनि तब वाकी रग रोवन धुनि छावै।
ध्यान प्रकाश समाधी होवै सुधि बुधि जहां भुलावै।५।
अनहद सुनै देव मुनि दर्शैं शुभ औ अशुभ जरावै।
अमृत चखै कहै का मुख से आनन्द उर न समावै।
राधा माधव हर दम सन्मुख निरखि निरखि मुसक्यावै।
जियतै में जो करतल करले सोई सूर कहावै।
कहैं जानकी सिंह त्यागि तन अचल धाम सो जावै।१०।