६४८ ॥ श्री रंगी माई जी ॥
पद:-
करिये निज काया में फेरी।
सतगुरु करि जप भेद जान लो तब हो जय जय तेरी।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि खुलै न लागै देरी।
सुर मुनि आवैं हरि यश गावैं बिहंसि सुख लेरी।
अनहद बाजा मधुर अवाजैं सुनत कटै दुख वेरी।५।
सीता राम की झांकी सन्मुख हर दम टरै न हेरी।
माया चोर काल यम मृत्यु सकै न तब फिर टेरी।
शान्ति दीनता प्रेम से तन मन जो कोइ एक में गेरी।
सोई नाम कमाय कै जानो धरि लेहैं खुब ढेरी।
रंगी कहैं अन्त निज पुर ले फिर न होय जग चेरी।१०।
सोरठा:-
मानि बिनय नर नारि, सतगुरु करि हरि लेव भजि।
रंगी कहैं पुकारि, जियत जानि जग देव तजि।१।