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६७० ॥ श्री अल्हर शाह जी ॥


पद:-

तुम कौन रहौ हम कौन रहै अब आये कहां औ जैहो कहां।

नहिं पावो पता तो खाव खता लो ठीक मता मुरशिद से यहां।

धुनि हो हर दम मिटि जावै गम चमकै चम चम क्या नूर महां।

लै ध्यान भि हो क्या गान भि हो सुख तान भि हो पगि जाव वहां।

दर्शैं सुर मुनि तहं लीजै गुनि बोलैं पुनि पुनि सुनि मस्त अहा।५।

सन्मुख में सीता राम लखौ तब मुख से यारों काह भखौ।

हर दम कौसर का जाम चखौ यह मानो सब हम खोलि कहा।

तन छोड़ि चलो निज धाम खिलो फिर काहे मिलो यहँ कौन रहा।

जो शब्द गहै सो जियति लहै बनि दीन रहै नहिं लौटि ढहा।९।