६९३ ॥ श्री मंजारी माई जी ॥ (८)
छिमा नारी रहे संग में यही उत्तम भगत जानो।
नहीं तो है बड़ा चक्कर कड़ा फन्दा जगत जानो।१।
पुत्र सन्तोष को भी संग रखने की ज़रूरत है।
सदा माता मगन रहती निरखती उसकी सूरत है।२।
दोहा:-
हरि सुमिरन बिन नारि नर, जानौ फूटा संख।
जैसे पक्षी किमि उड़ै, टूटि गये दोउ पंख।१।
चौपाई:-
सत्य पिता सरधा है माता। शील बहन श्री धर्म है भ्राता।
छिमा नारि सन्तोष है ताता। सतगुरु मुक्ति भक्ति के दाता।
तन के चोर शान्त सब भयऊ। जब से सुमिरन में मन दयऊ।
ध्यान प्रकाश धुनी लय पायो। सन्मुख राम सिया छबि छायो।
अनहद सुनो देव मुनि आवैं। मुख चूमैं हंसि हिये लगावैं।५।
नागिन जगी चक्र सब घूमत। सातौं कमल खिले सब झूमत।
पावो अमी गगन ते आता। ता को स्वाद बरणि नहीं जाता।
प्रेम भाव बिश्वास अटल है। जा से हिये के खुलत पटल है।९।