७१५ ॥ श्री कुद्दन शाह जी ॥ (३)
पद:-
आलस्य करै करम सब नासा।
जो वा के बस में हैं जग में होय नरक में बासा।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो बृथा जाय मत स्वांसा।
बड़ी भाग्य से समय मिला यह तन है बारि बतासा।
तिल तिल का वहं चारज लेहैं छूटै न तोले मासा।
सुर मुनि बेद शास्त्र में भाष्यो राखो नाम की आसा।६।