७२० ॥ श्री आलस्य शाह जी ॥ (६)
पद:-
करिये राम नाम का पेशा।
सतगुरु करि सब भेद जानिलो देखो अद्भुत देशा।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि होती रेशा रेशा।
सन्मुख राम सिया की झाँकी निरखत रहौ हमेशा।
अन्त त्यागि तन निज पुर राजौ सुफ़ल होय नर भेशा।
जे चूकैं तिनको जम कूटैं कठिन चलावैं केशा।६।