७३० ॥ अनन्त श्री स्वामी बाबा गोपाल दास जी ॥ (१)
पद:-
राम नाम मुद मंगल दाता।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो तब भक्तों फरियाता।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने छाता।
सब अवतार देव मुनि दर्शैं अनहद नाद सुनाता।
अमृत पिओ स्वाद क्या बरनौ रोम रोम पुलकाता।५।
नागिन चक्र कमल सब जागैं अद्भुत महक उड़ाता।
वेद शास्त्र उपनिषद संहिता सब पुरान बुलवाता।
राग रागिनी द्वापर त्रेता सतयुग को बैठाता।
लोक भुवन औ द्वीप खण्ड सब देश शहर लै आता।
कसबा पुरी ग्राम गिरि सागर नदी ताल उमड़ाता।१०।
सब से नाच गान करवावै देखत ही बन आता।
माया मृत्यु काल कर जोड़े बनिगे पूरे नाता।
बीज मंत्र औ मंत्र परम लघु महा मंत्र बिख्याता।
रेफ़ बिन्दु है नाम राशि का राम पिता सिय माता।
सब से सब में परे नाम है बिधि कर लेख मिटाता।१५।
चारों मोक्षन का दरवाज़ा आपै जाय खुलाता।
है अलेख औ अकथ अगम यह कोई पार न पाता।
प्रेम कि ताली से यह हाली दौड़ि तुम्हैं लिपटाता।
दीन बने बिनु मिलै न यह पद सत्य मानिये ताता।
कहैं गोपाल दास मत चूकौ है अमोल यह गाता।२०।