७३० ॥ अनन्त श्री स्वामी बाबा गोपाल दास जी ॥ (३)
हरि सुमिरन बिनु धोखा खैहौ।
सतगुरु करि जप भेद जानि कै तन मन प्रेम में तैहौ।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हर शै से सुनि पैहौ।
सिया राम प्रिय श्याम हरि सन्मुख में छबि छैहौ।
हर हनुमान संग में हर दम सुर मुनि संग बतलैहौ।५।
अमृत पिऔ सुनौ घट अनहद मन्द मन्द मुसकैहौ।
नागिन जगै चक्र सब घूमैं सातौं कमल खिलैहौ।
कहैं गोपाल दास तन तजि के हरि पुर बैठक पैहौ।८।