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७३७ ॥ श्री फकीरे शाह जी ॥


दोहा:-

हम तुम कोई रहै नहि, रहै राम का नाम।

या से हरि सुमिरन करो झगड़े से क्या काम।१।

सतगुरु से बिधि जानि कै सुमिरौ आठौ याम।

जिह्वा चलै न कर हिलै, ना कछु लागै दाम।२।

सन्मुख सीता राम हों, सुन्दर शोभा धाम।

कहैं फकीरे शाह तब, हरि पुर हो बिश्राम।३।