७५८ ॥ श्री गिरिवर दास जी ॥
दोहा:-
कमल नाल में छिद्र हैं, चालिस कहूँ सुनाय।
बिन सतगुरु यहि भेद को, कौन सकै बतलाय।१।
बीच में छिद्र है बड़ा जो, ता से उठत रकार।
फिरि सब में परवेश करि, रग रोंवन झनकार।२।
सब में ब्यापक है वही, जानै सो भव पार।
गिरिवर दास कहैं यही, सत्य बचन सुखसार।३।
७५९ ॥ श्री गुलजारी दास जी ।
पद:-
सतगुरु बिन भव न तरै कोई यह सुर मुनि का पक्का मत है।१।
धुनि नाम की ध्यान प्रकाश व लय क्या रूप छटा सब का सत है।२।
निर्भय निर्बैर हो मतवाला शुभ अशुभ कर्म जियतै हत है।३।
कहता गुलज़ारी सुरति शब्द को जानि लेव सांचा खत है।४।
७६० ॥ श्री मुनव्वर शाह जी ।
पद:-
सतगुरु करि जप की बिधि जानो राम सिया दरशैं।१।
ध्यान प्रकाश समाधी होवै धुनि सुनि जिय हर्षै।
सुर मुनि होंय प्रसन्न प्रेम करि शिर पर कर परसैं।
योग अग्नि में कर्म शुभाशुभ सब तुमरे झरसैं।
अनहद बाजा घट में सुनिये अमृत घन बरसैं।
कहैं मुनव्वर शाह भजन बिन नर्क परैं तरसैं।६।
शेर:-
श्री रामानन्द जी ने किरपा करी। हुआ मैं तो यारों जहां से बरी।१।
मुनव्वर कहैं साफ़ शीशा हुआ। दी मुझको सतगुरु ने ऐसी दुआ।२।
७६१ ॥ श्री इनायत शाह जी ।
पद:-
उठती रग रोवन से राम नाम धुनि कैसी आला जी।
ध्यान प्रकाश समाधी होवै सुधि बुधि टाला जी।
सन्मुख जनक दुलारी राजैं संग में दशरथ लाला जी।
सब सुर मुनि जिनका गुन गावैं बड़े कृपाला जी।
अनहद दरवाजे पर बाजै कैसी सुन्दर ताला जी।५।
इड़ा पिंगला सुखमन करिकै होहु निहाला जी।
तिरगुन के जब परे होय तब होय निराला जी।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो तज जग जाला जी।
यह नर देह सुरन को दुर्लभ भजु तजि गाला जी।
नाहीं तो यम आय धाय कर दें मुख भाला जी।१०।
पकड़ि तुम्हैं लै चलैं डाटते कहि कहि साला जी।
जाय करैं दरबार में हाजिर पूछैं हाला जी।
जरा बोलि नहिं पैहौ यारों खींचै छाला जी।
जाय के तुमको छोड़ैं गहिरे नर्क के नाला जी।
रक्त पीव मल मूत्र कृमिन ता में बहु पाला जी।१५।
काटै तन में रहा न जावै हो बेहाला जी।
नीचे से ऊपर को आओ सब तन चाला जी।
अजपा जाप जपो निशि वासर हो मतवाला जी।
सूरति शब्द क मारग पकड़ो करिके ख्याला जी।
ना कर चलै न जिह्वा डोलै मन का माला जी।२०।
मन स्थिर हो सुख तब पावो लो जय माला जी।
कर्म कि रेख पै मेख मारिये लिखा जो भाला जी।
जियतै में तै होय यहां तब मिटै बवाला जी।
कहैं इनायत शाह अन्त चलिये सुख शाला जी।२४।
दोहा:-
रामानन्द क शिष्य हूँ, कहैं इनायत शाह।
जिनकी कृपा कटाक्ष ते, रही न नेकौ चाह।१।
७६२ ॥ श्री चैन शाह जी ।
जारी........