७९१ ॥ श्री दिल जान जी ॥
पद:-
घर घर बसन व भूषण घनश्याम जी के खातिर।
तन मन से चाहैं सब जन अस प्रेम में हैं शातिर।
दिल जान कह कहूँ क्या रसना में बल नहीं है।
ऐसी जगह न देखा जहँ पर कि हरि नहीं है।
दिल जान को दिल जान कह दिल जान से दिल जान जी।५।
जब जहां से हो बरी गर सखुन मेरा मान जी।
हर दम लखौ अद्भुत छटा प्रिय श्याम सब के प्राण जी।
नाम की धुनि ध्यान लय औ नूर का चमकान जी।
चोर सब होवैं फ़ना मन की मती ठहरान जी।
देव मुनि सब दर्श दें है उनमुनी यह ध्यान जी।१०।
सूरति शब्द का रास्ता तै कीजिये सुख खान जी।
कल्पना से हो नहीं बस प्रेम ख्याल समान जी।१२।