७९६ ॥ श्री मूषे शाह जी ॥
पद:-
लिखा पट्टा गरभ में क्यों पोत देते फटै छाती।
करो सतगुरु पता पावो पास ही तो धरी थाती।
शब्द पर जब तलक सूरति एक रस लग नहीं जाती।
तभी तक तो कठिनता है पहुँच सकती नहीं पाती।
दीनता प्रेम धारन कर करो सुमिरन लगै लाती।
कहैं मूषे अभी चेतो शरम तुम को नहीं आती।६।