८१७ ॥ श्री खेलावन दास जी ॥
पद:-
झूँठ फुर कह के धन ठगते बनत ओझा कोई सोषा।१।
अन्त जमदूत जब घेरैं करैं भाला दृगन चोखा।२।
पकड़ि कर लै चलैं जम पुर धरा धन कहौ अब कोषा।३।
खेलावन दास कह भाई भजन बिन खावगे धोषा।४।
पद:-
झूँठ फुर कह के धन ठगते बनत ओझा कोई सोषा।१।
अन्त जमदूत जब घेरैं करैं भाला दृगन चोखा।२।
पकड़ि कर लै चलैं जम पुर धरा धन कहौ अब कोषा।३।
खेलावन दास कह भाई भजन बिन खावगे धोषा।४।