८५४ ॥ श्री बुद्धनि जी ॥
पद:-
बचन कहौं तस काटि देंय कुलटा कलि में बहु मेहरिया।
सास ससुर पति जेठ न मानै ननंद बनावैं चेअरिया।
देवर को लातन से मारैं यारन संग सोवैं सेजरिया।
करि सिंगार बैठि देहरी पर खोल देत दोउ केंवरिया।
उठि कै गलिन गलिन फिरि आवैं निर्भय मानो केहरिया।५।
बिषय की शौक शर्म नहि नेकौं पाप कि नाक में बे सरिया।
बड़ी मुलायम खांय मिठाई मुख जिमि लागै लेवरिया।
अन्त समय जम भालन मारैं बांधि के लोह कि जेवरिया।
पकड़ि केश कढ़िलावत चलि दें छूटि जाय सब टेंवरिया।
नाना कष्ट देंय मारग में पटकैं जैसे नेवरिया।१०।
सतगुरु बिना नर्क दुख भोगैं ज्ञान पै लागी सेहरिया।
बुद्धनि कहैं भजै जे हरि को पार होहि लै खेवरिया।१२।