८७० ॥ श्री बादशाह हुसेन जी ॥
पद:-
जो तन मन प्रेम से आशिक उसे माशूक मिलता है।
बिना आबे रवाँ गुलशन कभी कुम्हला न खिलता है।
जुदा रहता है जो रब से उसे सय्याद छलता है।
अन्त में जाय कर दोज़ख में मुस्कें बांधि ढिलता है।
जो मुरशिद करके इस कूचे में होकर दीन पिलता है।
कहैं बादशाह हुसेन यारों न वह फिर नेक हिलता है।६।