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९०१ ॥ श्री हरि नाथ जी ॥


पद:-

जियति में तै किया जिसने वही दोनो जहां अच्छा।१।

ध्यान धुनि नूर लै पायो रूप सन्मुख सदा अच्छा।२।

देव मुनि दर्श सब देते सुना कर प्रभु क जस अच्छा।३।

कहैं हरि नाथ आखिर में मिलै हरि धाम क्या अच्छा।४।