९०८ ॥ श्री बृज राज जी ॥
पद:-
बिना श्री बिष्णु के देखे हमें तो कुछ न भाता है।
करैं सब जक्त का पालन बड़े आनन्द दाता हैं।
पाय नर तन जो नहिं सुमिरै वही फिर नर्क जाता है।
करो मुरशिद तरो भव निधि नही तो रद्दी खाता है।
ध्यान धुनि नूर लै पावो रूप सन्मुख दिखाता है।५।
देव मुनि तीर्थ सब घट में निरखि कोइ कहि न पाता है।
बजै अनहद मधुर ऐसा सुनत तन मन लुभाता है।
बेधि षट चक्र हू जावैं कमल सातों फुलाता है।
नागिनी जाय जगि प्यारी घूमि सब लोक आता है।
सदा निर्बैर औ निर्भय करम दोनो जलाता है।१०।
कहैं बृज राज तन छूटै चला हरि धाम जाता है।
जियति में तै किया जिसने रहा जग से न नाता है।१२।