४२ ॥ श्री बटोही जी ॥
छन्द:-
जीह से जपि नाम योगी जागते तुलसी कहा।
सो जीह सुषमन घाट पर है, जानि सतगुरु से लहा॥
घृत दिया बत्ती नहिं जहां पर, होत परम प्रकाश है।
सो अचल पुर साकेत जानो, सर्व सुख की राशि है॥
अनुभव बिना नहिं भजन में, आनन्द आती जानिये।
चित्त बृत्ति निरोध करिकै लै में जाय के सानिये॥
नाम हरि का बीज जो है, ख्याल उस पर राखिये।
कहता बटोही बाज हर दम, अमी अनुपम चाखिये॥
दोहा:-
राम नाम मणि दीप को, धरिये सुखमन घाट।
जीह देहरी द्वार यह, खुलि जावै तब बाट॥
भीतर बाहर एक रस, होवै बिमल प्रकाश।
कहै बटोही बाज़ सब, ह्वै जावै दुख नाश॥
ज्ञान भक्ति जो गरुड़ को, काग भुशिण्डि सुनाय।
सो स्वामी जी कृपा करि, सहजै दीन लखाय॥
चेला श्री कलिराज भे, स्वामी जी के जान।
नर नारिन के तरन हित, मांग्यो यह बरदान॥
राम नाम के होंय सब, अधिकारी महराज।
आप कृपा निधि जक्त हित, प्रगटे हौ सिरताज।५।
सतगुरु रामानन्द जी, दीन कलिहि बरदान।
तुम्हरी राज्य में भक्त जन, ह्वै हैं बहुत महान॥
कबीर दास रैदास को, श्री प्रभु अज्ञा दीन।
सूरति शब्द कि जाप को, बाँटौ लखि कै दीन॥
निर्गुण सर्गुण बोध हो, पावैं मुक्ति औ भक्ति।
ध्यान गुरु का प्रथम करि लें, है या में अति शक्ति॥
ऐसा सुलभ न मार्ग कोइ, सत्य कहौं मैं तात।
आप से क्या कछु छिपा है, जानत हौ सब बात॥
स्वामी रामानन्द का शिष्य जाति नट केरि।
पूरन किरपा कीन प्रभु, छूटी मेरि व तेरि॥
नाम बटोही बाज़ है, ग्राम सोहावलि खास।
तन मन प्रेम से हरि भजै, सो पावै हरि पास।११।