५१ ॥ श्री गरियावन जी ॥
पद:-
अंश ईश्वर क कहलाकर भुलाया क्यों उन्हैं साले।
अन्त तू भागकर उनसे कहां को जायगा साले।
दूत जमराज के तेरे मुकाबिल आयगा साले।
देखते होश उड़ जैहै बोलि नहिं पायगा साले।
मारि तन तूरि लै चलिहैं कौन छुटवायगा साले।५।
पकरि दोनों तेरी टांगैं घसीटत जायगा साले।
रास्ते भर में सब छाला तेरा छिल जायगा साले।
करैं दरबार में दाखिल तो क्या बतलायगा साले।
जायकर नर्क में छोड़ैं पड़ा चिल्लायगा साले।
खान हित मूत्र मल देवैं विवश ह्वै खायगा साले।१०।
पहुँचतै पेट के अन्दर उलटि गिरि जायगा साले।
रहै हर दम बना भूखा न पल कल पायगा साले।
घोर अंधियार नहिं सूझै पवन नहिं आयगा साले।
सहै अति गन्ध की लपटैं कहां छिपि जायगा साले।
अगर मानै कहा मेरा तो सब दुख जायगा साले।१५।
मिलै सतगुरु से जा कर तू भजन बिधि पायगा साले।
सुरति को शब्द पर धरि कर जहां लगि जायगा साले।
ध्यान धुनि नूर लै पाकर मस्त बनि जायगा साले।
सुनै अनहद मधुर घट में वरनि क्या पायगा साले।
छटा सिया राम की सन्मुख तेरे छबि छायगा साले।२०।
देव मुनि संग में खेलैं लपटि मुसिकियायगा साले।
दीनता प्रेम ते तब फिर जगत बरतायगा साले।
कहै गरिआय गरियावन न फिर जग आयगा साले।२३।
दोहा:-
गरिआवन गरियायके, कहैं जियति ले जान।
सतगुरु बिन छूटैनहीं, गर्भ केर लटकान।१।
चौपाई:-
गरिआवन कह मेरी गारी। मानि बहुत उतरे भव पारी॥
जे जन हिम्मत जावैं हारी। उनसे कह्यौं तुरत ललकारी॥
जग में आय भजो धनु धारी। जिन तुम्हरी यह देह संवारी॥
भोजन बसन कर्म अनुसारा। देत न नेकौं लागत बारा॥
गर्भ में कौल कीन जो भाई। सो करि अदा चलो चट धाई॥
सोरठा:-
गरिआवन कह मानि जे जन हरि सुमिरन करैं।
ते पावैं सुख खानि जियतै चौरासी तरैं।१।