५५ ॥ श्री दिल खुसी जी ॥
पद:-
हरि सुमिरन बिन तन जाय अन्त जम तूरैं पशुरिया राम।
करो सतगुरु भव दुख जाय कहत दिल खुशी पतुरिया राम।
लो सूरति शब्द लगाय खुलैं हिरदय कि केंवरिया राम।
धुनि ध्यान नूर लै पाय चलो हरि ओरिया राम।४।
प्रभु हर दम परैं दिखाय अधर पर धरे मुरलिया राम।
तन छोड़ि चलो चट धाय बसो हरि क्वरिया राम।
जहं महा प्रकाश दिखाय कहत नहिं सरिया राम।
नर नारी जो गुन गाय गर्भ नहिं परिया राम।८।
दोहा:-
छीछा लेदर होयगी, जे न भजैं भगवन्त।
वेद शास्त्र बरनन करैं, ध्यावैं सुर मुनि सन्त।१।
कहैं दिलखुशी आय जग, राम श्याम भजि लेव।
तन छूटै हरि पुर चलौ, बास पास में लेव।२।