१०९ ॥ श्री हरी पण्डित जी ॥
पद:-
पढ़ना सुनना लिखना सच है समुझै जब आंखी कान खुलै।
सतगुरु करिके अभ्यास करै मुद मंगल हो सब ताप जलै।
क्या ध्यान समाधि प्रकाश होय धुनि नाम कि रोम रोम निकलै।
सन्मुख में श्यामा श्याम लखै सुर मुनि सब आय के नित्य मिलैं।
यह मारग सूरति शब्द क है पासै सब जियतै देखि मिलै।
कहते हैं हरी तन छोड़ि अन्त हरिधाम सिंहासन बैठि चलै।६।