११५ ॥ श्री सुशीला जी ॥
पद:-
सुखी जग में हो वही जो हरि में तन मन सान दे।
करिके सतगुरु प्रेम से अजपा कि जाप को ठान दे।
ध्यान धुनि लै नूर हो औ रूप क्या चमकान दे।
देव मुनि नित दर्श देवैं हर्खि हर्खि कमान दे।
साधन न होवै सिद्ध जब तक और को मति ज्ञान दे।
कहती सुशीला अन्त तन तजि अचल पुर को तान दे।६।