११७ ॥ श्री ज्ञानानन्द जी ॥
पद:-
राम मय सृष्टी लखै सो ज्ञान वान महान जी।
दीनता अरु भक्ति आवै खुलैं आंखी कान जी॥
सतगुरु करै सब होय तै मिटि जाय सान औ मान जी।
तन छोड़ि अन्त में जा बसे जहं होत खान न पान जी॥
अमित रवि सम तेज जहँ पर सो अचल पुर थान जी।
कहते हैं ज्ञानानन्द बानी भक्त ही कोइ जान जी।३।