१३३ ॥ श्री हज्जी जान जी ॥
पद:-
हरि के चरित मनोहर गावो।
देवालय सत्संग होय जहं तहं पर बैठि सुनावो।
साज बजाय सकौ कोइ निज कर तो संग में लै आवो॥
या दूसर कोइ और बजावै तो कहि धूम मचावो।
या इच्छा हो बिना साज के छेड़ि के जश फैलावो।५।
नाच से वाकिफ़ हो तो नाचौ भाव बताय रिझावो।
सात पांच या दुइ पद प्यारे नेम टेम से गावो।
भोजन बसन से मतलब राखौ धन में परि न ठगावो।
सादे बसन अंग पर धारो रज तम अन्न न खावो।
जो कोइ प्रेम से आय देय कछु चट सब को बरतावो।१०।
या बिधि बसर जगत में करिकै तन तजि हरि पुर जावो।
सत्गुरु करि गर नाम जानि लो मन का माल फिरावो।
ध्यान प्रकाश समाधि होय क्या रूप सामने छावो।
सुर मुनि का तब गान सुनो नित मुख से वरनि न पावो।
तब कीरतन करो गर भाई सब चरित्र दरसावो।१५।
मुख से जौन शब्द तुम भाखौ रूप रंग लखि पावो।
पुलकावली होय सब तन में नैन नीर झरि लावो।
गद गद कंठ देह सब कांपै मुख से बोलि न पावो।
मुरछा होय रहै नहिं सुधि बुधि उठि फिर क्या बतलावो।
कबहूँ नाना लीला ध्यान में लखि लखि के हर्षावो।२०।
बाजा सुनो हद्द नहिं जिनकी कहं तक दृष्टि घुमावो।
राग रागिनी मैं परिवार के दर्शन करि सुख पावो।
बेद शास्त्र उपनिषद संहिता सुर मुनि बैठे पावो।
ताल ग्राम ध्वनि तान सप्त स्वर सम लखि फिर गश खावो।
हरि इच्छा से चेत होय जब फिर चलि तन में आवो।२५।
अकथ अलेख अथाह अकह औ अगम अपार भँजावो।
सूरति हर दम शब्द पै राखो आप को आप मिटावो।
भीतर बाहर एक होय तब मुक्ति भक्ति को पावो।
तुरिया तीत दशा यह जानो तन मन प्रेम में लावो।
पांच प्राण गुण तीन चारि तन पांच तत्व गहि धावो।३०।
पाय अमोल शरीर नारि नर समय न खेलि गंवावो।
हज्जी जान कहैं आतम में परमातम बतलावो।३२।