१४१ ॥ श्री दबोटे शाह जी ॥
पद:-
कथा औ कीरतन पूजन पाठ करि सार क्या पाया।
हुआ मन है नहीं बस में करत जो उसके मन भाया।
मिलै सुख कुछ नहीं यारों जो तुमने मन न ठहराया।
करो मुरशिद पता पावो ध्यान धुनि नूर चमकाया।४।
समाधी में पहुँचि जावौ जहां सुधि बुधि न कुछ साया।
उतरि आवो लखौ सुर मुनि प्रेम करि उर में लिपटाया।
सामने हर समय सिय राम राधे श्याम छबि छाया।
दबोटे शाह कह चारिउ क फल अजपा से कर आया।८।