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१४४ ॥ श्री बेशरम शाह जी ॥


दोहा:-

संशय संड़सी कठिन है नारि कि कठिन निहाय।

पुरुष क घन अति ही कठिन उठै नर्क लै जाय॥

बिन सतगुरु उबरै नहीं बुद्धि भ्रष्ट ह्वै जाय।

ऊँच नीच समझै नहीं चसका जेहि लगि जाय॥

राम नाम को जानि ले तब को सकै गिराय।

ध्यान धुनी परकाश लै रूप सामने छाय॥

सुर मुनि आवैं संग में बैठें हंसि बतलाय।

ब्रह्म अग्नि में बासना सब वाकी जरि जाय।४।

सूरति शब्द कि जाप को जानै सब दुख जाय।

ऐसा मारग और कोइ सुलभ न देखा भाय॥

सबै पदारथ पास हैं सुमिरौ तन मन लाय।

नैन श्रवन खुलि जांय तब प्रेम में प्रेम समाय॥

कहैं बेशरम शाह मोहिं जो सतगुरु बतलाय।

तौन तुम्हैं हम आय के ठीक दीन लिखवाय।७।