१७४ ॥ श्री टंच शाह जी ॥
पद:-
भजन बिन होइहौ काल क कौर।
राजा बाबू पण्डित साधू करत और का तौर।
यह तन तो है बारि क बुल्ला करत न नेकौ गौर।
सतगुरु करौ नाम बिधि जानो छूटै भव की लौर।
ध्यान धुनी परकाश दशा लय पाय लखौ निज ठौर।५।
सुर मुनि मिलैं सुनौ नित अनहद टूटै असुरन बौर।
सन्मुख श्यामा श्याम कि झांकी जो सब में शिर मौर।
तन मन से निज को जो कोई करै जियति में छौर।
अन्त टंच कह राम धाम ले फिर न करै जग दौर।
मानुष का तन पाय हाय क्यों फँसे जगत की भौंर।१०।