१८८ ॥ श्री ठाकुर गम्भीर सिंह जी ॥
पद:-
भजन बिन यम करैं घण्टा चार।१।
अब हीं तो मन मानी करते परिहौ नर्क मंझार।२।
पाप कमाई जब गरुआई कौन उठाई भार।३।
दोनों तरफ से होय कुखातिर जैसे सड़ा अचार।४।
सतगुरु करौ नाम बिधि जानौ छूटै भव भय जार।५।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि खुलि जावै रंकार॥
हर दम झांकी नैनन सन्मुख कमला संग सुखवारे॥
अनहद सुनो देव मुनि दर्शें कर्म होंय जरि छार।
कहैं गम्भीर सिंह तन छूटै निज पुर जाव सिधार।
नागिन जगै चक्र षट नोचैं सातौं कमल फुलारे।१०।