१९३ ॥ श्री मक्कर शाह जी॥
पद:-
मुरशिद से जानि जिसने नाम खुमारी पाई।
उस की हर जाँ में सुनो होगी समाई भाई॥
ध्यान धुनि नूर समाधी में भुलाई धाई।
राम सीता कि छटा सामने छाई गाई।
देव मुनि रोज़ मिलैं मन से सिहाई आई।५।
घट में अनहद कि सुनै मधुर बधाई जाई।
निर्भय निर्बेर शक फिर तो न राई लाई।
अन्त तन त्यागि गर्भ में न झुलाई खाई।
भजन जिसने न किया उसको लुटाई माई।
नर्क में जाय दूत करते पिटाई काई।१०।
बांधि खम्भे में लोह सींक ललाई ताई।
नीचे से छोड़ि सीधी ऊपर चलाई नाई।
बोल फूटैगा नहीं होश उड़ाई झाई।
कल्पों भोगैगा दु:ख हाय मचाई धाई।
कौन किसका है वहां जाय बचाई वाई।
मक्कर कहते हैं जपो होगि सुनाई साई।१६।