२०१ ॥ श्री सब्रशाह जी ॥
पद:-
रोते रोते हमको भाई जन्म अगणित हो गये।
सतगुरु मिले शान्ती दिया सब पाप पल में खो गये॥
परकाश ध्यान समाधि धुनि से असुर सारे सो गये।
अनहद सुना सुर मुनि मिले करि प्यार प्रेम से धो गये।
सिय राम भी अनहद छटा से सामने मम हो गये।
त्यागि तन निजपुर लिया जग बीज नाम क बो गये॥