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२०३. ॥ श्री भर भऱ शाह जी ॥


पद:-

सतगुरु करि सुमिरो राम नाम। तब होवै नर का सुफ़ल चाम।१।

धुनि ध्यान समाधि प्रकाश आम। सुर मुनि नित आवैं करु प्रणाम।२।

हर दम सुनिये बाजा तमाम। सन्मुख छबि छाबैं सिया राम।३।

तन तजि चलि बैठो अचल धाम। भर भर कह छूटै गर्भ काम।४।


दोहा:-

महा प्रकाश अखण्ड है, वहां दिवस नहिं याम।

भर भर कह सुर मुनि कहैं, वही नित्य सुखदाम॥


शेर:-

आपको खुद आप भूले, दोष किसका इसमें है।

सतगुरु करो पावो पता, हरि हर जगह नहिं किसमें हैं।

हरि नाम धन जिसको मिला, उसको न आना जाना है।

भर भर कहैं अब हमको तुमको, कुछ नहीं लिखवाना है।

करता हूँ अब मैं बन्दगी हरि हुक्म जो था सो किया।

भर भर कहैं तव जिंदगी सुख से कटै निज धन लिया।६।