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२२१ ॥ श्री लड़ खड़ शाह जी ॥


पद:-

मन की एकाग्रता का सुख ले लो ले लो लेलो।

मुरशिद करो गहो मग दुख ठेलो ठेलो ठेलो।

धुनि ध्यान नूर हो फिर लय पेलो पेलो पेलो।

सुर मुनि के होंय दर्शन सँग खेलो खेलो खेलो।

अनहद सुनो अमी चखि सुख सेलो सेलो सेलो।५।

सन्मुख में श्याम श्यामा छबि एलो एलो एलो

है पास में तुम्हरे धन रेलो रेलो रेलो।

बह द्वैत से न मिलता एक धेलो धेलो धेलो।

गहि शान्ति दीनता को बनि चेलो चेलो चेलो।

सब चोर तन से भागैं तब मेलो मेलो मेलो।१०।

जियतै में कर्म दोनों धरि बेलो बेलो बेलो।

लड़खड़ कहैं तजो तन घर केलो केलो केलो।१२।