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२५८ ॥ श्री लंगड़ी माई जी ॥(२)


पद:-

बिहरत श्री जनक लली सखिन संग बिहार सर।

दिब्य नाव जगमगात घूमत सर में दिखात उठत शब्द छर।

बरनै को छबि अपार शारद औ शेष हार जिन सम को कर।

सुर मुनि नभ रहे छाय जय जय की धुनि सुनाय गिरत फूल फर।

सतगुरु करि लखौ भाय तन मन तब तो जुड़ाय करते क्यों बर।५।

ध्यान धुनी लय प्रकाश जियतै लहि होहु पास आखिर तन त्यागि।

जाव अपने चलि घर घर घर।७।