२७६ ॥ श्री धमसा माता जी ॥
पद:-
धमसा कहैं सुनो सुत जग में बीज मन्त्र ही सार कहावै।
सतगुरु करि जप भेद जानि ले जियतै नर तन का फल पावै।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोवन हर शै से सुनावै।
सुर मुनि मिलैं अमी रस चाखै अनहद बिमल बजै मन भावै।
नागिन जगै चक्र सब घूमैं कमल फूलि के महक उड़ावैं।५।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख आय छटा छवि छावैं।
दही दूध रबड़ी औ मलाई बिन्ध्य बासिनी नित्य पवावैं।
अन्त छोड़ि तन अचल धाम ले फेरि गर्भ में काहे क आवै।८।